मैंने पूछा- अबकी बार तो आपकी सारी इच्छाएँ पूरी हो गई ना? संतुष्ट हो ना !
वे बोले- मैं बहुत संतुष्ट हूँ ! मेरी ज़िन्दगी की ख्वाहिश पूरी हो गई, तुझे बहुत बहुत धन्यवाद ! मैं तेरा गुलाम हो गया जान ! जो तू मांगे वो हाज़िर है !
मैं हंस कर रह गई और कहा- मुझे कुछ नहीं चाहिए !
उन्होंने कहा- अब मेरे मोबाईल के सिग्नल जा रहे हैं, बाद में बात करूँगा !
मैंने कहा- ठीक है ! अब मैं भी नहाने जाऊँगी। ओ के !
फिर उन्होंने फोन काट दिया।
अगले 5-6 दिनों तक वे मुझसे दिन में कई बार बात करते रहे, मैं एक ही बात कहती रही- उन रातों को भूल जाओ, अपन दोनों ने जो कुछ किया, गलत किया !
वे बार बार एक ही बात कहते- यह हमने नहीं किया, इश्वर ने ही कराया, हम तो उसके हाथ की कठपुतलियाँ हैं, अपने हाथ में होता तो इतने साल क्यों लगते?
उनकी बात सही लगती पर फिर मैं कहती- अब नहीं करेंगे ! जो हो गया, सो हो गया !
मैं घर जाते ही दीदी से मिली, वो मुझे देख कर बहुत खुश हुई। घर पर बहुत मेहमान आये हुए थे, पूरा घर भरा था !
मैं भी खाना खाकर छत पर चली गई, जागरण का कार्यक्रम वहीं था। जीजाजी सामने भजन गाने वालों के पास बैठे हुए थे, मैं भी उनके परिवार की औरतों में बैठी हुई थी।
छत पर बड़ा हाल और कमरा बना हुआ था, सामने काफी खुली छत थी जहाँ भजन का कार्यक्रम हो रहा था।
जीजाजी की नज़रें सिर्फ मुझ पर ही जमी थी !
रात को एक बजे कार्यक्रम ख़त्म हुआ और सब लोग सोने चले गए ! काफी औरतें हाल में और पुरुष बाहर छट पर सो गए।
मुझे, दीदी को और बच्चों को जीजाजी ने नीचे कमरे में सुला दिया और खुद बाहर बरामदे में सो गए। मुझे डर था कि जीजाजी कुछ गड़बड़ न कर दें इसलिए मैं कमरे में नीचे सो रही थी। वहाँ पास में मैंने अपने बेटे और जीजाजी के बेटे-बेटी को सुला दिया। दीदी कमरे में तख्त पर सो गई। मैंने नीचे इतने बच्चों को सुला दिया कि किसी और के आने की गुंजाइश ही ना रहे !
वैसे सब थके हुए थे और कोई हलचल नहीं हुई। सुबह हवन और दोपहर को बिरादरी का खाना था जिससे 5 बजे तक निपट गए !
अब सब मेहमान अपने घरों को चल दिए थे, सिर्फ मैं रही थी ! मेरे मम्मी-पापा, भाई भी वापिस अपने गाँव चले गए, मुझे चलने को कहा तो जीजाजी ने कहा- यह कल आ जाएगी अभी इसको साड़ी दिलानी है।
शाम को उन्होंने कहा- चल, यहाँ मेरे रिश्तेदार रहते हैं, वहाँ घुमा कर लाता हूँ !
दीदी ने कहा- हाँ, इसे घुमा कर ले आओ !
मैं जीजाजी की बाइक पर बैठ गई, वो मुझे अपने रिश्तेदारों के घर घुमाने लगे। जब भी हम किसी एक घर से दूसरे घर जाते वो बार-बार मुझसे कहते- आज रात को मेरे पास आ जाना !
मैं बार बार मना कर देती- नहीं ! यह गलत है, जो हो गया उसे भूल जाओ !
जीजाजी बार-बार मेरी मिन्नतें करते- ऐसा मत करो ! मैं तुम्हारे बगैर मर जाऊँगा ! और बार बार ब्रेक लगते ताकि मैं उनकी पीठ से टकराऊँ !
शाम गहरी हो गई थी, आखिर में वो अपने भांजे के घर ले जा रहे थे जो थोड़ा शहर से बाहर था। फिर उन्होंने कहा- मुझे कुछ नहीं करना ! बस आइसक्रीम खिला देना !
मुझे पता था वो चूत चटवाने का कह रह थे।
मुझे फिर से वो बात याद कर नशा आना शुरू हो गया था !
पर मैंने कहा- अभी सर्दी है, जुकाम हो जायेगा !
तो वो बोले- वो गरम आइसक्रीम है ! अब तू नहीं मानी तो देख ले तुझे यहीं से उठा ले जाऊँगा !
मैंने सोचा कि अब इतना तरसाना ठीक नहीं है, मैं उनकी पीठ से चिपकती हुई बोली- चलो ठीक है ! पर सिर्फ आइसक्रीम ही खिलाऊँगी !
वे खुश हो गए !
भांजे के घर गए, वहाँ एक कमरे में उनके भांजे का छोटा बच्चा सो रहा था, भांजे की पत्नी रसोई में थी। उस कमरे में घुसते ही वो पलंग पर बैठ गए और मुझे अपनी जांघ पर बिठा कर चूम लिया। मेरी साड़ी पेटीकोट समेत ऊँची कर चड्डी के ऊपर से ही चूत को चूम लिया।
कमरे में अँधेरा था तो सब उन्होंने कुछ सेकण्ड में ही कर लिया। मैं कमरे से बाहर निकल गई, उनके भांजे की बहू से मिली और हम फिर अपने घर आ गए !
खाना खाया और जीजाजी ने इशारा किया कि मैं ऊपर हाल में सोता हूँ !
और हाल एक तरफ पलंग पर मेरे बेटे और अपने बेटे को कहा- सो जाओ !
और खुद हाल में चारपाई पर सो गए !
बाहर की ओर उनके एक और कमरा बना था, उसकी कुण्डी खुली रखी थी ताकि उसकी जरुरत पड़े तो रात को कुण्डी नहीं खोलनी पड़े ! पर जीजाजी किस्मत के बहुत तेज थे, इस बात की नौबत ही नहीं आई ! जीजाजी का बेटा थोड़ी देर में ही नीचे चला गया कि मैं ऊपर नहीं सोऊँगा मैं तो अपनी मम्मी के पास ही सोऊँगा।
तो दीदी ने कहा- तू अपने बेटे के पास जाकर हाल में सो जा ! तेरे जीजाजी भी वहीं चारपाई पर सो रहे हैं, तुम माँ-बेटा पलंग पर सो जाना !
मैं चुपचाप आकर हाल में सो गई, मुझे हाल में सोता देख कर जीजाजी की तो बांछें खिल गई !
उस हाल के साथ ही एक कमरा और बना हुआ था, उसका एक दरवाज़ा तो हाल में था दूसरा नीचे सीढ़ियों की तरफ था, उस कमरे में मोटा गद्दा बिछा हुआ था !
मैं चुपचाप पलंग पर अपने बेटे के पास सो गई और दस मिनट में मुझे नींद भी आ गई।
करीब आधे-पौन घंटे बाद मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरा सर सहला रहा है !
मैं जगी तो देखा कि जीजाजी खड़े खड़े मेरा सर सहला रहे थे। मुझे नींद आ रही थी, मैंने उनको कहा- चुपचाप जाकर सो जाओ !
वो मुझे हाथ जोड़ने लगे, मैंने ध्यान नहीं दिया तो वो मेरा हाथ पकड़े-पकड़े ही नीचे जमीन पर बैठ गए घुटनों के बल और नीची आवाज़ में मिन्नतें करने लगे कि शाम को तो वादा किया था और अब मना कर रही हो !
मैं उठ कर एक तरफ सरक गई। पलंग काफी बड़ा था, मैंने कहा- चलो आ जाओ, यहीं सो जाओ !
पर वे बोले- यहाँ नहीं, अभी कहीं तुम्हारा बेटा जाग गया तो वो क्या सोचेगा? मेरी मम्मी के पास मौसाजी क्या कर रहे हैं?
मैं फिर उनके साथ खड़ी हुई, वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे हाल से जुड़े कमरे की तरफ ले जाने लगे !
कमरे में और हाल में रोशनी बंद थी, जीजाजी के हाथ में मोबाईल था, उसकी रोशनी में वो चल रहे थे। कमरे में जाते ही उन्होंने मुझे उस गद्दे पर लिटा दिया, जो दरवाज़ा नीचे सीढ़ियों की तरफ जाता था, उसकी धीरे से कुण्डी लगाई और हाल की तरफ जिसमें मेरा बेटा सो रहा था, ढुका दिया !
हाथ से मोबाईल को पास के आले में रखा, साथ में कंडोम भी था, मुझे पता चल गया कि चुदना तो है ही ! मैं मानसिक रूप से तैयार होने लगी। मैंने मैक्सी और पेटीकोट पहना था उसको मैंने कमर पर कर अपनी चड्डी उतार कर सिरहाने रख ली ताकि अँधेरे में ढूंढ़ कर पहनने आसानी रहे !
जीजाजी ने पंखा पूरी गति में कर दिया और टटोलते हुए मेरे पास आये।तब तक मैंने उनका आधा काम कर दिया था, चड्डी उतर कर दोनों घुटने खड़े कर दिए थे, टटोलते ही सीधी नंगी चूत मिली उन्हें और वे उस पर टूट पड़े, उसे बुरी तरह से चाटने लगे।
मुझे भी बड़ा आनन्द आ रहा था, मैंने कहा- जी भर कर आइसक्रीम खा लो ! फिर बार बार मत कहना ! आज इसको पूरी खा जाओ।
वो बोले- यार, तेरी आइसक्रीम इतनी शानदार है कि इससे जी भरता ही नहीं है, चाहे कितनी बार ही खाओ !
और वो मेरी चूत बुरी तरह से चाट रहे थे, काट रहे थे, अपनी जीभ को गोल कर अन्दर घुसा रहे थे। मुझे बड़ा आनंद आ रहा था पर मुझे खतरे का अंदेशा भी था कि कहीं दीदी न आ जाएँ या मेरा बेटा न जाग जाये !
दस मिनट हो गए उनको चूत चटाई करते हुए, मैं एक बार परमानन्द ले भी चुकी थी, मैंने उन्हें रोका और कहा- अब आइसक्रीम बहुत हुई ! जो करना है फटाफट कर लो !
वो जैसे यही सुनना चाहते थे, अपनी लुंगी हटाई, चड्डी को एक पैर में किया, मेरी टांगे तो ऊँची थी ही, अपने लण्ड पर थोड़ा थूक लगाया और मेरी चूत में एक झटके से पेल दिया, पर पूरा नहीं घुस सका, थोड़ा पीछे खींचा और साँस रोक कर जोर का झटका मारा और जड़ तक अन्दर ठेल दिया।
मेरे मुँह से अटकते अटकते निकला- धी ......रे......आ....ह......दू.. .खे....!
और उन्होंने लाड से मेरे गाल थपथपा दिए और कहा- दुखता है? अब नहीं दुखाऊँगा ! मेरी जान के दुख रहा है ! इस साले लण्ड ने मारी है, अभी रुक, इसको मैं मारूँगा !
मुझे हंसी आई, मैंने आनन्द में आकर चूत में संकुचन किया और उनकी गति धीमी पड़ गई, वो बोले- क्या करती हो? मेरे लण्ड को तोड़ोगी क्या? साली की चूत है या गाण्ड की दरार ! इतनी कसी !
मुझे ख़ुशी हुई, मैंने कहा- मुझे चोदना है तो गाण्ड और लण्ड में जोर रखना पड़ेगा ! वर्ना अंदर-बाहर नहीं कर सकते। यहाँ कोई नाथी का बाड़ा नहीं है, यह मेरी छोटी सी प्यारी सी चूत है !
अब जीजाजी मुझे जोर जोर से चोद रहे थे !
अचानक मुझे कुछ याद आया कि ये मेरे कमरे पर मुझे घोड़ी बनने का कह रहे थे, मैंने सोचा आज इनकी वो इच्छा तो पूरी कर दूँ !
मैंने कहा- थोड़ा रुको और इसे बाहर निकालो !
वो अपना लण्ड निकालते हुए बोले- क्या हुआ?
मैंने कहा- कुछ नहीं !
कह कर मैंने उस गद्दे पर उनकी तरफ पीठ कर दोनों घुटने मोड़ कर अपना सर गद्दे पर टिका दिया और अपने चूतड़ थोड़े ऊँचे कर दिए। बस यह ध्यान रखा कि कहीं ये अपना लण्ड मेरी कुंवारी गाण्ड में न फंसा दें जिसमें एक अंगुली घुसने की भी गुंजाइश नहीं है।
पर शायद उनका ऐसा कोई इरादा नहीं था इसलिए उन्होंने थोड़ा मेरे कूल्हों को ऊपर किया, मैं काफी ऊपर हो गई तो उन्होंने अपने हिसाब से मुझे थोड़ा नीचे किया और आधा लण्ड पीछे से मेरी चूत में फंसा दिया।
वो अपनी उखड़ी सांसें सही कर रहे थे, उम्र उन पर अपना प्रभाव डाल रही थी !
पर मैं उर्जा से भरपूर थी और मुझे पता था ये थक भले ही जाओ पर रुकने का स्टेमिना तो बहुत है इनमें और मुझे उनको जल्दी झाड़ना था क्यूंकि किसी के आने का डर सता रहा था मुझे !
मैं खुद थोड़ा पीछे हुई और मैंने अपने आप को आगे-पीछे करना शुरू किया और वो जितनी देर सीधे रहे, उसमें मैंने 7-8 धक्के लगा दिए !
मेरे धक्कों से उन्हें भी बहुत जोश आया और बोले- साली चुदाने को बहुत मर रही है तो ले !
ऐसा कह कर वे मेरी पतली कमर को पकड़ कर तूफानी गति से धक्के मारने लगे।उनकी कमर पीछे जाती तो वो हाथों से मेरी कमर को आगे की और धकेलते और जब धक्का मारते तो कमर को अपनी और खींचते इस प्रकार जितना हो सके अपने लण्ड को मेरी चूत में घुसा रहे थे।
5-7 मिनट के बाद मैं घोड़ी बने बने थक गई थी, मैंने कहा- अब मेरी चूत सूख चुकी है, इसमें जलन हो रही है, जल्दी से अपना निकाल लो !
तो उन्होंने कहा- चलो सीधी लेट जाओ !
मैं सीधी सो गई। उन्होंने सीधा अपना मुँह मेरी चूत पर लगाया और ढेर सारा थूक मेरी चूत में छोड़ दिया।
मैं चिहुंक गई- क्या करते हो? गंदे ! अब कोई मुँह लगाता है क्या?
वो हंस कर बोले- पहले जो लगाया था?
मैंने कहा- अब तो आपने इसकी चटनी बना दी, पहले तो तरोताज़ा थी ना !
वो बोले- इसमें क्या है, मैंने अपने लण्ड की खुशबू डाली है इसमें !
और फिर अपना लण्ड मेरी चूत में डाला, मेरी टांगे उठाई, उन्हें अपने कंधे पर रखी और गपागप चोदने लगे।
मैं बिल्कुल दोहरी हो गई थी, मेरी चूत जितनी उनके लण्ड के पास हो सकती थी, हो गई थी और वो हचक हचक कर मुझे चोद रहे थे।
मैं देवी-देवताओं को मना रही थी कि इनका पानी निकल जाए !
पूरा कमरा फचक फचक की आवाजों से गूंज रहा था और मेरे तीसरी या चौथी बार पानी आ गया था। अब वे मुझे बोझ लग रहे थे, मैं कुछ रूआंसी होकर कह रही थी- आप अपना डॉक्टर के पास जाकर इलाज करवाओ, आपको कोई बीमारी है जो इतनी देर से छूटता है ! या आप पर बुढ़ापा आ गया है, अन्दर पानी ही नहीं है तो छूटेगा क्या?
वो मेरी किसी बात पर ध्यान ना देकर दांत भींच कर सुपरफास्ट स्पीड से धक्के लगा रहे थे अपने पंजे मेरे कूल्हों पर गड़ा कर !
फिर अचानक उनके शरीर ने एक झटका खाया, मुझे पता चला कि अब मेरी मुक्ति हुई !
उनके मुँह से लार निकल कर मेरे गाल पर गिरी और उन्होंने मेरे गाल चूम लिए।
7-8 धक्के धीरे धीरे और लगाए और...
और मैं कहना भूल गई कि जब घोड़ी के बाद उन्होंने मुझे चोदना शुरू किया, तब कंडोम लगा लिया था !
जीजाजी ने अपना कंडोम निकाला, उसके मुँह पर गांठ लगाई और मुझे बताया- देख कितना पाना आया है, तुम कह रही हो कि है नहीं !
मैंने कहा- इस गन्दी चीज़ को मुझसे दूर रखो और मुझे जाकर सोने दो !
उन्होंने भी गद्दे की सलवटें सही की, दरवाज़े की कुण्डी खोली और कंडोम को कहीं छुपाया और चुपचाप सो गए !
यह थी मेरे जीजाजी के घर में मेरी पहली चुदाई !
सुबह जल्दी उठ कर मैं नीचे चली गई, तब तक जीजाजी सो ही रहे थे, मेरा बेटा भी नींद में था।
नीचे जाते ही मेरा सामना दीदी से हुआ और वो कुछ गौर से मेरी तरफ देख रही थी ! पत्नियाँ अपने पति के प्रति हमेशा शक्की रहती ही हैं !
उसे पता था कि सारी रात मैं उसी हाल में सोई रही थी जहाँ उसके पतिदेव सो रहे थे पर मैंने अपने चेहरे पर ऐसे भाव ही नहीं आने दिए और कहने लगी- उस लड़के ने तो सोने ही नहीं दिया, कभी उसको पानी पिलाओ, कभी पेशाब कराओ, मैं तो परेशान हो गई !
मेरे ऐसे बात करने पर दीदी कुछ सामान्य हुई, उसने सोचा होगा कि इसका बेटे इतना जग रहा था तो क्या हुआ होगा ! फिर उसने ऐसे विचार अपने मन से हटा दिए और राजी राजी बातें करने लग गई !
मैंने भी चाय-नाश्ता तैयार किया और जीजाजी से बात तो क्या उनके सामने ही नहीं आई।
शाम को दीदी ने कहा- इसको साड़ी दिला कर लाओ और इसको कोई फार्म भरना है, इसको पासपोर्ट साइज की फोटो खिंचानी है, वो सब भी करवा आओ !
मैं जीजाजी के साथ बाइक पर बैठ बाज़ार चली गई।
जीजाजी मुझे बाज़ार लेकर गए, रास्ते में उन्होंने कहा- आज सारे दिन तुमने मुझसे बात क्यों नहीं की? यहाँ तक कि मेरे सामने भी नहीं आई !
मैंने कहा- आपको पता नहीं है, दीदी को शक हो गया था, बात करने से क्या मतलब? आपका काम तो कर दिया ना !
तो वो मुस्कुराये और कहा- मेरा मन नहीं भरा, आज फिर करना पड़ेगा !
मैंने कहा- आपकी मांग बढ़ती ही जा रही है, यह गलत है। आपको पता है कि अगर किसी को पता चल गया तो मेरी इज्ज़त मिटटी में मिल जाएगी। औरतों की सिर्फ इज्ज़त ही होती है, पूरुषों को कई कुछ नहीं कहता, सब औरत को ही गलत कहेंगे !
उन्होंने कहा- तुम चिंता मत करो, किसी को पता नहीं चलने दूँगा ! तुम हाँ तो कहो !
मैंने कहा- नहीं का मतलब नहीं अब !
वो फिर मिन्नतें करने लगे, मैंने थक कर कहा- ओ के, हाँ !
तो उन्होंने कहा- कब और कहाँ?
मैंने एक गाने की लाइन गा दी- देख के मौका, मारा चोक्का, दिल की बात बताई रे !
और कहा कि इस मामले में पहले से योजना बना कर नहीं चलता है, मौका मिलते ही अपना काम निकल लो !
वे खुश हो गए, मुझे एक अच्छी और महँगी साड़ी दिलाई और कहा- अपनी दीदी को इसकी कीमत कम बताना !
मेरी फोटो खिंचवाई और एक हम दोनों की साथ खिंचवाई !
फिर हम घर आ गए !
रात को फिर कमाल हुआ जीजाजी की किस्मत तेज़ रही। फिर मुझे उसी हाल में सोना पड़ा, फर्क इतना हुआ कि अपने बेटे के साथ जीजाजी की छोटी बेटी को भी मुझे साथ सुलाना था !
आज मैं जब ऊपर सोने आई तो मैंने मैक्सी के नीचे पेटीकोट और चड्डी पहनी ही नहीं, ब्रेजरी की कसें भी खोल रखी थी, मुझे पक्का पता था जीजाजी छोड़ेंगे तो नहीं !
मैं उन बच्चों को लेकर सो गई। दीवार की तरफ बच्चों को सुलाया और दूसरी तरफ मैं सो गई। जीजाजी भी अपनी चारपाई पर आकर लेट गए।
मुझे थोड़ी देर में नींद आ गई !
करीब बारह बजे मेरी नींद खुली, जीजाजी मेरे सर के पास खड़े थे और मेरे स्तन सहला रहे थे जोकि कसें खुलने के कारण बाहर ही थे।
मैं एकदम चमक गई, मैं उनका मुँह पकड़ कर अपनी आँखों के पास लाई, अँधेरे में पता चल गया कि हाँ जीजाजी ही हैं, तो आश्वस्त हो गई।
वो थोड़ी देर सहला कर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उठाने लगे। मुझे वास्तव में नींद आ रही थी, मैंने कहा- मुझे सोने दो और आप भी सो जाओ आज कुछ नहीं करना !
तो उन्होंने धीरे से मेरा वाला गाना गया- देख के मौका, मारा चौक्का ! अभी चोक्का मारने का मौका है ! फिर बार बार नहीं मिलेगा !
मैंने सोचा- चलो भाई, चुदना तो है ही, ऐसे तो ये छोड़ेंगे नहीं ! इनकी किस्मत तो देखो कैसे बार-बार इनको एकांत मिल जाता है।
फिर से अँधेरे में उनके साथ रवाना हुई साथ वाले कमरे के गद्दे पर जाने के लिए, उन्होंने करीब करीब मुझे उठा ही लिया था, मुश्किल से मेरी एक टांग कभी कभी नीचे ज़मीं पर लग रही थी, बाकी तो वे मुझे अपने से लिपटाये हुए चल रहे थे।
फिर मेरी मंजिल आ गई यानि की ज़मीं पर बिछा हुआ गद्दा !
उन्होंने कल वाला काम किया यानि कुण्डी लगाने और दरवाज़ा ढुकाने का, पंखा पूरी गति पर कर दिया और मेरी बाहों में आ गए।
मैंने उनसे पूछा- यह कमरा और यह गद्दा सिर्फ चुदाई के काम ही आता है क्या? यहाँ न तो कोई सोता है ना और ना इसका कोई और काम है? वे बोले- मेरी जान, यह कमरा और यह गद्दा खास आपकी चुदाई के लिए ही तैयार करवाया है !
और मुझे चूमने लगे।
थोड़ी देर में मेरी मैक्सी कमर पर थी वे नीचे से हाथ डाल कर मेरे स्तन भी दबा रहे थे, छोटे छोटे नारंगी के आकार के थे, उन्हें वो बुरी तरह से दबा रहे थे, मुझे स्तन दबवाना अच्छा नहीं लगता है इसलिए मैंने उन्हें कहा- अब बस करो ! दर्द हो रहा है !
क्यूँकि वे मेरे स्तन की भूरी घुंडियों को अपनी उंगलियों में मसल रहे थे। उनके हाथ मेरे पूरे बदन पर घूम रहे थे, खास कर मेरी चूत पर ! वहाँ उनका हाथ ज्यादा समय ले रहा था कभी उंगलियों से मेरी चूत के चने को मसल रहे थे तो कभी एक अंगुली मेरी चूत में अन्दर-बाहर कर रहे थे। आनन्द से मेरी चूत चिकनी हो रही थी, हालाँकि चूत की फांकें पिछलीचुदाई से सूजी हुई थी पर उनके हाथ में जादू था। मेरी चूत की फ़ांकों में एक दिक्कत है कि कई दिनों के बाद चुदाई होगी तो चूत कसी हो जाएगी जैसे कुंवारी हो और चूत की फांकें सूज जाएगी जो कई दिनों तक सूजी रहेगी ! फिर 10-15 दिन तक चुदती रहेगी तो सूजन उतर जाएगी। ऐसा कई बार मेरे पति से चुदाने पर होता ही था !
खैर थोड़ी देर में जीजाजी के होंठ मेरी चूत के द्वार पर थे ! वे पता ही नहीं कब नीचे खिसक गए थे। मैंने भी अपनी टांगें उठा ली अपनी चूत आराम से चटवाने के लिए !
वो अपनी जबान से पूरी चूत को चाट रहे थे और मेरी सूजी हुई चूत की फांकों को आराम मिल रहा था जैसे उनकी थूक और लार का मरहम लग रहा था। वे अपने मुँह में मेरी चूत की फांकों और मेरे चने को चिभल रहे थे और 3-4 मिनट में मेरा पानी छूटने लगा। मेरा सारा शरीर कांप रहा था, झटके खा रहा था। उन्हें शायद पता चल गया था इसलिए उनके चाटने की गति बढ़ गई थी और अपनी जीभ को कड़ी करके मेरी चूत के चने पर रगड़ रहे थे। दो चार झटकों के बाद मैं शान्त पड़ गई, मैंने उनका कन्धा पकड़ कर रुकने का इशारा किया। पानी निकलते ही औरत को अपनी चूत पर कुछ करना अच्छा नहीं लगता है !
मेरी आँखें बंद थी और आनन्द को महसूस कर रही थी जो स्खलन के रूप में निकला था।
मैंने उनको अपने पास खींचा और उनकी गर्दन पकड़ कर गालों पर चुम्मा देकर काट लिया !
वे उछल पड़े और बोले- साली, निशान लगाएगी? सुबह तेरी बहन को क्या जबाब दूँगा?
ऐसा बोल कर अपने गाल को हथेली से रगड़ कर निशान मिटाने लगे जो मेरे दांतों से पड़ गया था।
अब मैं संतुष्ट थी, मैंने कहा- आपको आइसक्रीम खानी थी, खा ली ! अब मुझे भी सोने दो और आप भी सो जाओ !
मुझे उनको छेड़ना था, मुझे पता है जिसका लण्ड खड़ा हो वो ऐसे नहीं छोड़ेगा भले ही बलात्कार ही करना पड़े तो करेगा !
वे फिर से मुझे चूमते हुए बोले- मारोगी क्या मुझे? सारी रात हाथ में पकड़ा बैठा रहूँगा मैं !
मैंने हंस कर कहा- चलो, जल्दी करो, इस चूहे को इसका बिल दिखाओ !
इतना सुनते ही उन्होंने अपने सुपारे को थूक से चिकना किया और मेरी चूत में पेल दिया जो इंतजार ही कर रही थी उसका !
उनका लण्ड बहुत सख्त हो रहा था, मुझे ऐसा लगा जैसे पत्थर का हो, मुझे चुभ रहा था पर उसकी रगड़ अच्छी भी लग रही थी। वे दनादन धक्के लगा रहे थे, मेरी टांगें पूरी ऊपर थी, पंजे पीछे गद्दे को छू रहे थे जैसे मैं योग कर रही हूँ !
वो पूरे जोर से धक्के मार रहे थे, पूरा लण्ड जड़ तक मेरी चूत में ठूंस रहे थे, उनके आंड मेरी गांड से टकरा रहे थे, उनकी जांघें मेरे कूल्हों से टकरा रही थी, पट-पट की आवाजें आ रही थी, उनका लण्ड मेरी चूत में दबादब घुस रहा था, उनके मुँह से ऐसी आवाज़ आ रही थी जैसे कोई लकड़ी काटने वाला कुल्हाड़ा चला कर लकड़ी काट रहा हो !
फिर वो हट गए, एक झटके में मुझे उठा दिया मैं कुछ सोच पाऊँ, तब तक तो मुझे उल्टा कर दिया। मैं समझ गई कि पिछली रात घोड़ी बनकर इनको मज़ा दे दिया है तो ये आज फिर बनायेंगे।
मैंने सोचा कि पुरुषों को ज्यादा मौके देना ही ठीक नहीं है, पर अब तो बनना ही पड़ा।
अब फिर मुझे पीछे से जबरदस्त धक्के लग रहे थे, मैं बार बार मुँह के बल गिर रही थी पर मेरी कमर उनकी हथेली में पकड़ी हुई थी, मेरी चूत में दर्द होने लग गया था, अब मैं उन्हें फिर से जल्दी निकालने की मिन्नतें कर रही थी।
फिर उन्होंने मुझे सीधा लिटा दिया, दोनों टांगें सीधी रखी और फिर से मेरे ऊपर छा गए, मेरी टांगों के ऊपर अपनी टांगें फंसा कर कूद कूद कर चोदने लगे। उनके कूल्हे बिजली की गति से ऊपर-नीचे हो रहे थे, लण्ड पिस्टन की तरह अन्दर-बाहर हो रहा था, मेरे मुँह से आह आह की आवाज़ें आ रही थी, उनकी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थी।
20-30 धक्के मारने के बाद उन्होंने मेरी टांगें फिर उठा कर अपने कंधे पर रख ली और दे दनादन !
मैं बुरी तरह थक गई थी, मेरा स्खलन 3-4 बार हो चुका था, अब मुझे मज़ा नहीं आ रहा था पर जानबूझकर आह उह मुमः की सेक्सी आवाज़ें निकल रही थी ताकि जीजाजी को मज़ा आये और उनका निकल जाये।
मैं नीचे से ऊँची हो होकर चुदा रही थी, अचानक जीजाजी ने झटका खाया और मैंने उनको धक्का दे दिया।
वो अचकचा गए कि क्या हुआ।
मैंने कहा- कोई इतनी देर ऐसे करता है क्या? मैं मर जाती तो?
मैं फटाफट वहाँ से उठी और लड़खड़ाते कदमो से बाथरूम में गई, काफी देर तक ठन्डे पानी से अपनी चूत धोई और चुपचाप पलंग पर सो गई। जीजाजी की तरफ देखा ही नहीं !
तो यह थी जीजाजी के घर पर मेरी दूसरी चुदाई !
मैं जीजाजी के ही घर दो रात लगातार उन से चुद कर अगले दिन मैं वापिस अपने पीहर चली गई। जीजाजी खुद मुझे अपनी बाइक पर बिठा कर पर बस में बिठाने आये और मना करने के बाद थम्सअप की बोतल और काफी सारे फल लाकर दिए।
3-4 दिन के बाद मैं वापिस जयपुर चली गई अपनी ड्यूटी पर।
जीजाजी से मेरी रोज़ ही मोबाईल पर बात होती थी, उन्हें पता था कि जहाँ मैं रहती थी, उस कमरे में बीएसएनएल के सिग्नल कम आते थे इसलिए उन्होंने कहा कि वे मुझे दूसरा फोन लाकर देंगे जिसमें दो सिम लग जाएँगी और एक ऍम टी एस की सिम ला देंगे जिससे आपस में मुफ़्त बात हो सकेगी।
मैंने उनसे सहमति जता दी।
फोन पर बात करते तो ज्यादातर उनका विषय सेक्स ही होता था। धीरे धीरे मैं भी उनकी बातों में रूचि लेने लग गई थी। वो अपनी सेक्स की बातें बताते कि उन्होंने कितनी लडकियों के साथ सेक्स किया है और तो और उन्होंने बताया की होली के दिनों में अपने दोस्तों के साथ उन्होंने कई बार गधियों को भी चोदा था ! और कई बार लड़कों की भी गाण्ड मारी थी, मुझे नहीं पता था कि कोई गाण्ड भी मार या मरा सकता है !
मेरे सेक्स-ज्ञान में वृद्धि हो रही थी पर मैं यह बात मान नहीं रही थी तो उन्होंने कहा- क्या बात करती हो? औरतें तो कुत्ते से और घोड़े से भी चुदवा लेती हैं या एक साथ दो-दो तीन-तीन आदमियों से चुदवा लेती हैं।
यह मैंने कहीं नहीं सुना था इसलिए मैं उनकी बातें किसी बेवकूफ की तरह सुन रही थी जैसे पाँचवीं में पढ़ने वाले बच्चे को कोई बी.ए. के सवाल पूछ रहे हो !
मैं बार यही कहती कि ऐसा थोड़े ही होता है !
तो जीजाजी ने कहा- अबकी बार मैं अपने मोबाइल में ऐसी फिल्में लेकर आऊँगा तब तुम देख लेना।
मैंने कहा- ठीक है !
वैसे मैंने कई बार ब्लू फिल्म अपने पति के साथ देखी थी पर जानवरों वाली बात मुझे हज़म नहीं हो रही थी।
वो मुझे फोन करते और और हमारी बातें काफी लम्बी चलती जिनमें वो बार बार मेरी चूत चाटने का जिक्र करते, मेरे खयालों में उनका चूत चाटना आ जाता और मेरी सांसें गर्म हो जाती, मुँह से सिर्फ हूँ हु की आवाज़ निकलती और वे मुझे बातो से ही गर्म कर देते।
फिर फोन पर ही यहाँ वहाँ अपना बदन छूने का कहते पर मुझे अपने हाथ से ऐसा करना अच्छा नहीं लगता ! पर मुझे अपने आप मज़ा लेने आता है, मैं तकिये को खड़ा करके या सोफे की किनारे पर अपनी चूत रगड़ती, थोड़ी देर और मेरा स्खलन हो जाता। यह तरीका मुझे बहुत पहले से आता था, पतिदेव तो साल-छः महीने में आते थे तो कभी कभी चुदने का ख्याल आ ही जाता था तो ऐसे ही अपने को संतुष्ट कर लेती थी पर 2-4 महीनों में एक बार !
चुदने की मन में बहुत ज्यादा तब आती थी जब ऍम सी आने का समय आता पर मैं अपने को काबू में कर लेती थी। पर अब जीजाजी से रिश्ते बन गए तो ये तो रोज़ ही फोन पर सेक्सी बातें करते तो 8-10 दिनों में मुझे तकिये की सवारी करनी ही पड़ती। उन्हें भी यह बात पता चल गई इसलिए वो बात करते करते कहते- अब तकिये को खड़ा कर ले और थोड़ा चूत के दाने को तकिये पर रगड़ ले !
ऐसे ही बातें करते 15 दिन बीत गए।
तब जीजाजी ने कहा- दीपावली में वहाँ से कब रवाना होना है, मुझे बता देना ताकि मैं तुमसे एक बार वहीं आकर मिल लूँ और जो मैंने तुम्हारे लिए मोबाइल और सिम ली है वो तुम्हें दे सकूँ !
मैंने बताया कि मैं उस दिन ऑफिस से गाँव जाने के लिए निकलूँगी तो जीजाजी ने कहा- अपने पापा और मम्मी को पहले मत बताना कि इस दिन आऊँगी।
मुझे यह बात समझ नहीं आई पर मैंने कहा- ठीक है, नहीं कहूँगी !
और उन्होंने कहा- तो बस स्टैण्ड पर बारह बजे आ जाना !
मैंने कहा- ठीक है, मैं आ जाऊँगी !
साथ ही उन्होंने कहा- तुम मेहंदी लगा कर आना, मुझे तुम्हारे मेहंदी लगे हुए हाथ बहुत अच्छे लगते हैं।
मैंने कहा- ठीक ! पर हम वहाँ थोड़ी देर ही मिल सकते हैं, फिर हम साथ ही बस में बैठकर आ जायेंगे। आप अपना गाँव आये, तब उतर जाना और मैं अपने गाँव आ जाऊँगी।
मेरा गाँव उनके गाँव से थोड़ा आगे है।
उन्होंने कहा- ठीक है।
मैं 12 बजे बस स्टैण्ड पहुँची तो वो वहाँ थे ही नहीं। मैंने उनको फोन किया तो वो बोले- मैं स्टैण्ड के बाहर पहुँच गया हूँ, तुम भी इधर आ जाओ। मेरे हाथ में जो बैग था, उसमें काफी सामान था इसलिए मैं उसे मुश्किल से उठा कर चल रही थी पर बाहर जाते ही वे सामने मिल गए और मुझे देखते ही वो देखते ही रह गए।
मैंने हरी साड़ी पहन रखी थी, काजल, बिंदी, मेहंदी, नेलपालिश यानि सब नखरे कर रखे थे मैंने और मैं बहुत ही सुन्दर लग रही थी।
मुझे देख कर उनका मुँह खुला का खुला रह गया और मैं अपनी सुन्दरता पर कुछ शरमाई और कुछ गर्व महसूस किया।
वे बोले- कहीं मैं बेहोश ना हो जाऊँ ! तुम मुझे इतनी सुन्दर लग रही हो !
मैंने कहा- यह मेरा बैग उठाओ, इसका बोझ लगेगा तो होश आ जायेगा।
और मैं हंस पड़ी ! मेरी खिलाहट सुन वे भी मुस्करा दिए !
फिर हम वहाँ से रवाना हुए तो मैंने पूछा- अब हम कहाँ चल रहे हैं?
तो उन्होंने कहा- मैंने एक होटल में कमरा लिया है, वहाँ चल रहे हैं।
मैंने कहा- आपका दिमाग ख़राब है? होटल में कैसे चल सकते हैं? किसी ने देख लिया तो?
वे बोले- तुम चिंता मत करो, यहाँ हमें कोई नहीं जानता, और होटल में भी मैंने तुम्हें पत्नी लिखवाया है।
मैंने कहा- नहीं, मैं होटल नहीं जाऊँगी !
तो वो मिन्नतें करके बोले- एक बार चलो तो सही, चाहे वहाँ रुकना मत।
मैं बेमन से उनके साथ रवाना हुई !
हम एक सिटी बस में बैठे, हम आमने-सामने बैठे थे, जीजाजी ने चश्मा पहन रखा था, मेरे सामने देखते ही उन्होंने आँख मार दी, मुझे अचानक एक पल के लिए तो गुस्सा आ गया पर फिर याद आया कि आँख मारने वाला तो मेरा आशिक है, फिर मैं मुस्कुरा दी।
होटल के सामने एक रेस्तराँ था, वहाँ हमने लस्सी पी, मुझे वैसे भी भूक लगी हुई थी। रेस्तराँ वाले ने एक दस रूपये का सिक्का दिया जो जीजाजी ने मुझे दे दिया।
मैंने पहली बार दस रूपये का सिक्का देखा था, मुझे बड़ा सुन्दर लगा था जैसे सोने का हो !
सड़क पार करते ही होटल था, उसमें भी नीचे खाने का और फास्ट फ़ूड का स्थान था और ऊपर रहने का होटल था। उसमें खास बात यह थी कि फास्ट फ़ूड वाले रेस्तराँ से ही होटल में जाने की लिफ्ट थी।
जीजाजी का कमरा तीसरी मंजिल पर था, होटल पाँच मंजिल का था जिसमें रिसेप्शन दूसरी मंजिल पर था। मुझे यह बड़ा अच्छा लगा कि मुझे रिसेप्शन के सामने से नहीं जाना पड़ेगा।
हम दोनों लिफ्ट में चढ़े, जीजाजी ने 3 नंबर का बटन दबा दिया। लिफ्ट में हम दो ही थे, लिफ्ट चलते ही जीजाजी मुझे पकड़ कर चूमने लगे।
मैंने कहा- मैं भागी नहीं जा रही हूँ, यहाँ छोड़ दो, कोई देख लेगा !
जीजाजी ने मुझे छोड़ दिया। लिफ्ट रुकी और जीजाजी ने कमरे का दरवाज़ा खोला और हम कमरे में पहुँच गए।
कमरा ऐ.सी. था, ऐ.सी. टी.वी. सब चल रहे थे. बहुत ही शानदार कमरा था, बड़ा सा पलंग, मेज-कुर्सी, अलमारी, अटेच्ड लेट-बाथ !
मैं सीधे फ्रेश होने बाथरूम में घुस गई। मैं बाथरूम से वापिस आई तो जीजाजी पलंग के पास खड़े थे !
मेरे बाहर आते ही उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और अपने सीने से चिपका लिया। मैं भी किसी बेल की तरह उनसे लिपट गई। हम खड़े-खड़े जैसे एक दूसरे में समाना चाह रहे थे। हम करीब दो मिनट ऐसे ही एक दूसरे से चिपके खड़े रहे, जीजाजी ने मुझे इतनी जोर से अपनी बाहों में भींच रखा था कि मेरी हड्डियाँ कड़कड़ाने लगी थी। आज हम पहली बार रोशनी में एक दूसरे की बाहों में समाये थे इसलिए मुझे उनसे शर्म आ रही थी, मैं अपना मुँह उनके सीने में छिपा रही थी और वे बार-बार मेरा मुँह ऊपर कर चूमने की कोशिश कर रहे थे।
हम दोनों को एक दूसरे से चिपक कर खड़े होने में असीम सुख मिल रहा था जैसे कई जन्मों के बिछड़े प्रेमी प्रेमिका मिले हों।
फिर हम अलग हुए, हमारे चेहरे से मिलने की ख़ुशी फ़ूट रही थी। अलग होकर हम दोनों ने लम्बी और गहरी सांसें ली यानि इतनी देर जैसे हमारी सांसें ही रुक गई थी हम दोनों मुस्कुरा रहे थे, कुछ शर्म आ रही थी तो नज़रें भी चुरा रहे थे और एक दूसरे को छिपी नजरों से देख रहे थे।
मेरे जीजाजी की नजरो में मेरे लिए प्रंशसा और चाहत का भाव था और मैं भी उन्हें खुश होकर देख रही थी। मेरा विचार था कि मैं थोड़ी देर रुक कर गाँव चली जाऊँगी !
फिर उन्होंने अपना बैग खोल कर अपनी लुंगी बाहर निकाली और अपने कपड़े उतारने लगे। उन्हें कपड़े उतारते हुए कुछ शर्म आ रही थी इसलिए मैंने टीवी चालू कर लिया और फिल्म देखने लगी, मेरी मनपसंद फिल्म 'जब वी मेट' आ रही थी।
जीजाजी ने अपने कपड़े हेंगर पर टांगें और बाथरूम में चले गए। थोड़ी देर में वापिस आये और मेरे पास आकर पलंग पर बैठ गए, मुझे फिर से बाहों में लेकर चूमने लगे।
मैंने शरारत से कहा- इतनी अच्छी फिल्म आ रही है, देखने दो ना !
वो मुझे अपनी तरफ झुकाते अभी इससे भी अच्छी फिल्म हम बनाते हैं !
मैंने कहा- रुको, मेरी साड़ी में सलवटें पड़ जाएँगी !
उन्होंने कहा- यह बात तो सही है, फटाफट उतार देते हैं और कुछ पलो में मेरी साड़ी जीजाजी के हाथ में थी।
जीजाजी मेरी साड़ी वार्डरोब में रख दी और मेरे बैग से मेरी सेक्सी मैक्सी निकाल कर मुझे देते हुए कहा- चलो, फटाफट यह पहन कर आओ !
मैंने कहा- इसे पहननी क्या जरूरी है? ऐसे ही आ जाओ ना ! कुछ भी पहनो उसे तो उतरना ही है।
पर उन्होंने कहा- नहीं, इसमें तुम बहुत सेक्सी लगती हो, इसे ही पहन कर आओ ! और नीचे पेटीकोट और चड्डी मत पहनना ! वैसे भी उनकी कोई जरुरत नहीं है।
ऐसा कहते हुए उन्होंने जबरदस्ती मुझे पलंग से नीचे खड़ा कर दिया। मैं मैक्सी लेकर बाथरूम में गई क्योंकि उनके सामने मुझे शर्म आ रही थी और अपने कपड़े बदले, पेटीकोट तो नहीं पहना पर चड्डी तो पहनी।
मैं बाहर आई तब तक वे पलंग पर लेट गए थे और बेसब्री से मेरा इंतजार कर रहे थे। मैं उनके पास गई तो उन्होंने अपनी बाहें उठा कर मेरा स्वागत किया। मैं भी उनकी बाहों में समां गई!
अब वे मुझे बुरी तरह से चूम रहे थे, उनके हाथ मेरे सारे शरीर पर घूम रहे थे। मेरी मैक्सी कुछ ही पलों में मेरी कमर पर पहुँच गई थी, मैं शरमा कर उसको बार-बार नीचे करने की असफल कोशिश कर रही थी !
वे मेरी पीठ की तरफ हाथ डाल कर मेरी ब्रेजरी के हुक खोलने की कोशिश कर रहे थे।
मैंने कहा- क्या हुआ? आपसे एक हुक भी नहीं खुला?
उन्होंने कहा- अभी खुल जायेगा, खुलेगा नहीं तो टूट जायेगा।
मैंने कहा- तोड़ना मत प्लीज ! नहीं तो आपको दूसरी दिलानी पड़ जाएगी।
मैं थोड़ी देर बिना हिले रही और उन्होंने उसे खोल दिया और मुझे सीधा करके मेरे स्तन दबाने लगे। उन्होंने मेरी मैक्सी काफी ऊपर कर मेरे स्तनों को नंगा कर दिया जो छोटे छोटे नारंगी के आकार के थे। वे उन्हें सहला रहे थे, उनकी भूरी घुन्डियों को अंगूठे और अंगुली से मसल रहे थे। मुझे भी आनन्द आ रहा था, मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी। मैंने उन्हें कहा- आपने कई बार मेरे स्तनों की मांग की थी, अब ये आपके सामने हैं, जो करना है कर लो इनका !
वे मसलते हुए बोले- हाँ, बहुत तड़फाया है इन्होंने ! इतना तो तेरी चूत ने भी नहीं तड़फाया।
तो मैंने हंस कर कहा- तो क्या करोगे इनका? कही उखाड़ मत ले जाना इनको !
वे बोले- इतनी प्यारी चीज को प्यार करूँगा !
और सीधे मेरे स्तनों पर मुँह लगा दिया और उन्हें चूसने लगे।
मैं सिहर गई, मेरे सारे शरीर में आनन्द की तरंगें उठने लगी !
वो बारी बारी से दोनों को चूस रहे थे, एक चूसते, तब तक दूसरे को हाथों से दबाते और फिर उन्होंने अपना मुँह पूरा खोल कर मेरे पूरे स्तन को मुँह में भर लिया और उसे साँस के साथ और अन्दर खींचने लगे। मेरा स्तन उनकी साँस के साथ उनके मुँह में खींचा जा रहा था और मुझे आनन्द आ रहा था।
आज हम दोनों बिना किसी डर से सेक्स कर रहे थे इसलिए बहुत ज्यादा आनन्द आ रहा था।
मैंने कहा- अब इन्हें छोड़ो, कोई और आपकी जीभ का इंतजार कर रहा है।
उन्होंने स्तन छोड़े, फटाफट मेरी चड्डी उतारी, मेरे पाव खड़े कर उन्हें थोड़ा चौड़ा किया और सीधे मेरी चूत में अपना मुँह घुसा दिया !
मैं पहले से ही स्तन चुसवा कर गर्म हो गई थी, अब मेरी किलकारियाँ निकल रही थी। कमरे में ए.सी. टी.वी. पंखे सब चल रहे थे, दरवाज़ा बंद था और साऊँड प्रूफ भी था इसलिए में खुल कर आ...ह आ..ह कर रही थी, उनकी सधी हुई जीभ मेरी संवेदना को जगा रही थी। उनके चूत चूसने का ढंग निराला है, वे काफी पूर्वक्रीड़ा करते हैं, अपने पर उनका गज़ब का काबू है।
थोड़ी देर में मैं स्खलित हो गई, मैंने उनको रोक दिया पर उनका मन अभी चूत चाटने से भरा नहीं था इसलिए थोड़ा रुक कर फिर से अपनी जीभ मेरी चूत में घुसा दी। मेरी सिसकारियाँ फिर शुरू हो गई। आज मुझे पता चला कि बिना डर के सेक्स में कितना मज़ा आता है।
वो फिर मेरी चूत को बुरी तरह से चूस रहे थे जैसे स्तन को मुँह में भरा वैसे मेरी सारी चूत को काफी हद तक मुँह में भर रहे थे ! मुझे फिर आनन्द की तरंगें मेरे बदन में महसूस हो रही थी, मैंने उन्हें कहा- जाओ अपन मुँह बाथरूम में धोकर आओ और कुल्ला भी कर आओ, बस बहुत हो गया यह चाटना और चूसना ! अब आगे की कार्यवाही करो !
मैंने जितनी देर चूत चटवाई, मैक्सी को शर्म से अपने मुँह पर रखी थी मुझे शर्म आ रही थी और जीजाजी आज तीन ट्यूबलाईट की रोशनी में आराम से मेरी चूत को देख रहे थे। हालाँकि मैंने उन्हें कई बार लाईट बंद करने कहा जिसे उन्होंने अनसुना कर दिया।
वे बाथरूम में मुँह धोने गए मैंने दीवार पर टंगी घड़ी में समय देखा तो एक बजकर पचास मिनट हुए थे।
कुछ ही पलों में जीजाजी आ गए, अपनी लुंगी और चड्डी खोली और मेरी टांगें अपने कंधे पर ली अपने लण्ड के सुपारे को थोड़ा थूक से चिकना किया, मेरी चिकनी चूत में सरका दिया।
मैं मैक्सी मुँह पर ढके ढके ही कराह उठी- आ...ह्ह्ह्हह थो...डा...धी...रे.. डालो दुखता है !
उन्होंने सहमति जताते हुए मेरी गाण्ड थपथपा दी और फिर उन्होंने मेरे चेहरे की तरफ देखा और बोले- यह चेहरा क्यूँ ढक रही हो? आज तो मैं चुदते हुए तेरे चेहरे के भाव देखूँगा। ऐसा कह कर मेरे चेहरे से जबरदस्ती मैक्सी को हटा दिया। मुझे उनके सामने देखने में शर्म आ रही थी इसलिए मैंने पलंग पर पड़े होटल वाले तौलिये को अपने मुँह पर ओढ़ लिया पर आज जीजाजी किसी समझौते के मूड में नहीं थे, उन्होंने मुझ से चोदते चोदते ही तौलिया छीना और दूर सोफे पर फेंक दिया। अब मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और जीजाजी मेरे गालों, आँखों की बंद पलकों और होटों को चूमने लगे।
कमर उनकी लगातार चल रही थी !
अब मेरी चूत ने भी उनका लण्ड अपने अन्दर खपा लिया था इसलिए मुझे दर्द नहीं हो रहा था और दनादन अन्दर-बाहर हो रहा था !
थोड़ी देर में उन्होंने आसन बदल लिया, मेरी टांगें सीधी कर दी और मेरे पैरों पर अपने पैर जमाकर कूद-कूद कर मुझे चोदने लगे। थोड़ी देर के बाद मुझे घोड़ी बना दिया और पीछे से मेरी रगड़पट्टी करने लगे। फिर पलंग के किनारे पर घोड़ी बनाया और पंलग से नीचे खड़े हो कर पीछे से चोदने लगे।
फिर वापिस मुझे पलंग पर लिटा दिया। मुझे पता था आज इनको कोई डर नहीं है इसलिए मेरी चुदाई लम्बी चलेगी।
मैं भी शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार थी इसलिए मैं उनको कुछ नहीं कह रही थी, बस चुदा रही थी, जैसे वे मुझे इधर-उधर कर रहे थे, मैं हो रही थी। और वो लगातार बस चोद रहे थे, और चोद रहे थे।
ए.सी. चल रहा था, तो भी उन्हें पसीने आ रहे थे जिसे वे बार बार पास पड़ी लुंगी से पौंछ रहे थे, खासकर उनके ललाट और गर्दन के पास ज्यादा पसीना आ रहा था।
ना जाने कितने आसन बदले, उन्होंने मुझे जैसे रुई की गुड़ीया समझ लिया हो पर मैं भी उन्हें मज़ा दिलाना चाहती थी इसलिए मैंने उन्हें रोका नहीं ! मेरा पानी ना जाने कितनी बार निकला था, मुझे याद नहीं ! कम से कम 7-8 बार तो निकला ही होगा !
थोड़ी देर बाद मुझे फ़िर मज़ा आने लगता और मेरी चूत गीली हो जाती ! ऐसा कई बार हुआ और फिर उनका स्खलन हुआ !
उनके मुँह से भैंसे के डकारने जैसी आवाज़ें निकली और स्खलन होते होते उन्होंने धीरे धीरे 1
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